सेंट्रल ब्‍लॉक, पहली मंजिल

कश्‍मीर गैलरी

जम्मू-कश्मीर राज्य में कई हिमालयी नदियां बहती हैं, जिनमें सिंधु, झेलम और चिनाब सबसे महत्वपूर्ण हैं. भौगोलिक स्थिति, जलवायु, मिट्टी और ऊंचाई के कारण, इस क्षेत्र में वनस्पति उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती जंगलों से लेकर तापमानी शंकुधारी जंगलों तक की विशेषता लिए हुए है. भारत के इस भाग की जलवायु भी देश के अन्‍य भागों के समान ही वर्ष, स्थान और पहाड़ी भूगोल के समय पर निर्भर करता है.

पापियर मखे कश्मीर की एक पुरानी कला है, जिसकी जड़ें प्राचीन चीन में मिलती हैं. पापियर-मखे बनाने की कला में कागज को पानी में डालकर उस कागज द्वारा पानी को सोख लेने तक उसे पानी में डुबाए रखना शामिल है. उसके बाद, उस कागज को चिपकनेवाले पदार्थ और घोल में मिलाया जाता है. उसके बाद, उस परिणामी घोल को आकार में ढाला जाता है और छोड़ दिया जाता है. वांछित आकार की वस्तु तैयार हो जाने के बाद उसमें सोने की जटिल डिजाइन उकेरी जाती हैं. कश्मीर गैलरी में पापियर मखे के डिब्‍बे, सजावटी सामान और अन्‍य डिब्‍बों की ‍एक श्रृंखला है.

कश्मीर की एक और विशेषता है - कढ़ाई. कश्मीर की ‘जाली’ का काम बहुत लोकप्रिय है. एक शाल, ओढ़नी या बिस्‍तर की चादर की कढ़ाई के काम को पूरा करने में महीनों लग जाते हैं. कारीगर पक्षियों, मेपल के पेड़ों और अन्य सजावटी डिजाइनों की सजावटी - सिलाई करते हैं. इसमें सबसे लोकप्रिय और जटिल काम है – धागे से 'चेन सिलाई' करना, जिसे शॉल और कपड़ों पर किया जाता है. गैलरी में पश्मीना और सोज़नी शॉल की ‍विभिन्‍न किस्में प्रदर्शित की गई हैं.

लकड़ी पर नक्काशी करना कश्मीर में सबसे प्रसिद्ध कुटीर उद्योगों में से एक है. रिलीफ लकड़ी की नक्काशियां अलमारियाँ, कुर्सियों, मेजों और बक्सों की सजावट को और बढ़ा देती हैं. ऐसी रिलीफ नक्काशी के लिए उच्च स्तर की महारत हासिल होना आवश्यक होता है. ट्रे, सिगार के बक्से और टेबल टॉप के लिए सामान्‍यत: अखरोट की लकड़ी का उपयोग किया जाता है. यह कारीगरी एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी तक चलती है. इस प्रकार की शिल्पकारी का जीवंत रूप श्रीनगर में जामा मस्जिद के पास ख्वाजा नक्‍शबंद की प्रसिद्ध दगाह में देखने को मिलता है. लकड़ी का काम और सींक की बनी वस्‍तु के उद्योग कश्मीर में विकसित हुए हैं. इस गैलरी में इस तरह की उत्तम लकड़ी की वस्‍तुएं उपलब्‍ध हैं.