सेंट्रल ब्लॉक, पहली मंजिल
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कालीन गैलरी
फारस को दुनिया का सबसे बड़े कालीन बुनाई केंद्र के रूप में जाना जाता है. 16वीं शताब्दी में शाह अब्बास (सन् 1568-1628 तक) के संरक्षण में सफाविद वंश के काल में कालीन उद्योग की उत्पत्ति देखी गई. शाह अब्बास की मृत्यु के बाद कालीन बनाने की कला ने धीरे-धीरे अपना महत्व और मूल्य खो दिया और सन् 1721 के अफगान आक्रमण के दौरान अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गया. उसके बाद 19वीं शताब्दी तक फारस इस खोई हुई कला की साख को दुबारा प्राप्त नहीं कर सका.
संग्रहालय के मध्य-पूर्वी कला संग्रह में फारसी कालीन का विशेष स्थान है. फर्श पर बिछाने, दरवाजों या दीवारों पर लटकन के रूप में और अन्य सजावटी प्रयोजनों के रूप में कालीनों के उपयोग से ये अपनी कलात्मक आकर्षणता और गुणवत्ता से वंचित नहीं हैं. इन जटिल बुनाई के उत्तम नमूनों को अलग-अलग सजावटी पैटर्न के साथ गैलरियों में सजाया गया है, जो फारस के सभी महत्वपूर्ण भागों अर्थात्, काशन, बोखरा, ताब्रीज़, किर्मन, शिराज़ का प्रतिनिधित्व करते हैं.
संग्रहालय में कुछ बोखरा कालीन हैं, जो तुर्कोमन जनजातियों द्वारा बुने हुए हैं, इनका लंबा अष्टकोणीय रूप है और इन्हें सीधी रेखाओं से हीरे के रूप की पंक्तियों में रखते हुए अष्टकोणीय के बीच में जोड़ा गया है. प्रत्येक अष्टकोणीय के बीच में एक आठ-बिंदु वाला सितारा बुना हुआ है. ये कालीन 18 वीं शताब्दी के बने हुए हैं.
कुछ ऐसे कालीन भी हैं, जिन पर छोटी मूर्तियां बनी हुई हैं और ऐसा ही एक कालीन है, जिसमें खुसरो घोड़े पर बैठा है और शिरीन छत पर बैठी है. इस कालीन की अग्रभूमि में बतख और मछलियों को तैरते हुए में दिखाया गया है तथा मुख्य बॉर्डर पर चारों ओर शिकारगढ़ के दृश्यों को बनाया गया है.
16वीं शताब्दी में पूजा करते समय बैठने के लिए उच्च गुणवत्तावाले मोटे कालीन केवल ईरान में तैयार किए और बुने जाते थे. इस संग्रहालय में भी कुछ ऐसे कालीन हैं. फारसियों ने इन कालीनों में धातु के धागे का भी उपयोग किया है. संग्रहालय में रखे ऐसे एक कालीन को मुसाल्ला धातु के धागे से काशन में बुना गया था. इस कालीन का निचला आधार भाग सोने के धागे से बुना गया है, जो बहुत ही महीन और सपाट तार है और इसे मुड़े और कपड़ेनुमा वस्त्र में ज़री किया गया है.