सलारजंग संग्रहालय पुस्तकालय
सलारजंग संग्रहालय पुस्तकालय 1 9 61 में संसद के एक अधिनियम के अंतर्गत जनता के लिए खोला गया. पुस्तकालय में पांडुलिपियों का संग्रह, जिसमें अद्वितीय नमूने हैं, गुणवत्ता की दृष्टि से दुनिया में सबसे अधिक है. इसमें सुलेख कला और अलंकृत सजावट की कई उत्कृष्ठ पुस्तकें हैं; खूबसूरत सजावटवाले सामान और स्वर्ण युक्त रंगों का एक कलात्मक मिश्रण है, जो मूल रंगों में है और जिन पर लैपिस लज़ुली के लिए नीला, मोती के लिए सफेद, शंग्राफ के लिए लाल और हरे रंग के लिए ज़बरजाद (पन्ना) का उपयोग किया गया है. इन पुस्तकों के कैलिग्राफरों, कलाकारों और पुस्तक बाइंडर्स ने अपनी – अपनी कला का उत्कृष्ठ प्रदर्शन किया है और इस प्रकार लिखित शब्दों को श्रद्धांजलि अर्पित की.
सलारजंग संग्रहालय पुस्तकालय में सलारजंग - परिवार द्वारा अधिग्रहित पुस्तकों और पांडुलिपियों का संग्रह शामिल है. इनमें से कुछ संग्रहित वस्तएं 1656 ईस्वीं की हैं. इसे नवाब मीर तुराब अली खान, सलारजंग - । ने सुगठित किया और पूर्ण रूप दिया था, जिसे उनके बाद उनके पुत्र नवाब मीर लाइक अली खान, सलारजंग - ।। ने और अधिक बढ़ाया तथा इसका विकास किया गया और अंतत: नवाब मीर यूसुफ अली खान, सलारजंग – III द्वारा इसे पूर्ण रूप दिया गया. पुस्तकालय और पांडुलिपि सेक्शन दूसरी मंजिल पर स्थित हैं. पुस्तकालय के इस समृद्ध संग्रह में 62,772 मुद्रित पुस्तकें हैं, जिनमें से 41,208 अंग्रेजी में, 13,027 उर्दु में, 1108 हिंदी में, 1105 तेलुगु में, 3,576 फारसी में, 2,588 अरबी में और 160 तुर्की भाषा में हैं. अंग्रेजी में मुद्रित पुस्तकों में अनुसंधान पत्रिकाएं, दुर्लभ तस्वीरों और मूल्यवान नक्काशियों के एल्बम शामिल हैं. इस विशाल संग्रह की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें कला, वास्तुकला, पुरातत्व, शारीरिक, जैविक, सामाजिक विज्ञान, साहित्य, इतिहास और यात्रा जैसे विभिन्न क्षेत्रों के विषयों को शामिल किया गया है. इसमें इस्लाम, हिंदू धर्म, ईसाई धर्म और अन्य धर्मों की धार्मिक पुस्तकों का संग्रह भी शामिल है. इस संग्रह में सबसे पुरानी पुस्तक 1631 ईस्वीं में मुद्रित एक अंग्रेजी पुस्तकों का समूह है. इस पुस्तकालय में कला, मूर्तिकला, चित्रकला, सिरेमिक कला, सजावटी कला, संग्रह कला, पर्यटन आदि जैसे विषयों पर नवीनतम लेखों को निरंतर मंगाया जाता है. संग्रहालय के कर्मचारियों के अलावा इस संग्रहालय में अलग भारत और विदेश - दोनों के शोध विद्वान नियमित रूप से संग्रहालय में आते रहते हैं. प्रतिदिन औसतन 10 लोगों द्वारा पुस्तकालय का उपयोग सीखने और ज्ञान के विस्तारण तथा कुछ नया सीखने के लिए किया जाता है.
मुद्रित पुस्तक संग्रह
अंग्रेजी सेक्शन
अंग्रेजी सेक्शन में लगभग 40,000 पुस्तकें हैं और इसमें कुछ दुर्लभ पुस्तकें भी हैं. इसमें इतिहास, दर्शनशास्त्र, इंजीनियरिंग, जीव विज्ञान, साहित्य और जीवनी जैसे विभिन्न विषयों पर पुस्तकें शामिल हैं. पुस्तकालय में सबसे पुरानी पुस्तक है - रिचर्ड नोलस, 1631 ईसवीं द्वारा लिखी "तुर्क का सामान्य इतिहास". इस संग्रह में एक 1848 से 1861 के बीच ‘हाईलैंड्स इन दी अवर लाइफ ऑफ जर्नल’ पुस्तक से "लीव्स” शीर्षक भी है, जिसे रानी विक्टोरिया द्वारा सर सलारजंग - I को उपहार में दिया गया था. इस पुस्तकालय में गुरु नानक की जीवनी "जन सखी" भी है. इस संग्रहालय के संग्रह में "द ओशन ऑफ स्टोरीज" जैसे महत्वपूर्ण साहित्यिक कार्यों के अनुवाद भी हैं. "द ओशन ऑफ स्टोरीज" पुस्तक "कथा सरित सागर" का अंग्रेजी अनुवाद है. इस पुस्तकालय में पूरी दुनिया के इतिहास के विषयों पर पुस्तकों का एक विशाल संग्रह भी है.
ओरिएंटल सेक्शन
इस खंड में लगभग 19, 000 मुद्रित पुस्तकें हैं. लगभग 13,000 उर्दू भाषा में हैं, अरबी में 2,500, फारसी में 3,500 और तुर्की में 160 पुस्तकें हैं. उपलब्ध पुस्तकें ईरान, इराक, सीरिया, भारत, पाकिस्तान आदि जैसे विभिन्न देशों से इस्लाम, साहित्य, इतिहास, चिकित्सा सहित कई विस्तृत श्रृंखला के विषयों पर हैं. कई पुस्तकें दक्कन के इतिहास पर हैं. पुस्तकालय के इस खंड में उर्दू के शास्त्रीय कवियों की साहित्यिक कृतियां भी उपलब्ध हैं.
पांडुलिपि संग्रह
पांडुलिपियों के संग्रह चर्मपत्र, कपड़ा, ताड़ के पत्ते, कागज, कांच, लकड़ी और पत्थर जैसे विभिन्न माध्यमों में हैं और अरबी, फारसी, उर्दू, तुर्की, दक्खनी, पुष्तो, हिंदी, संस्कृत, तेलुगू और उड़िया जैसी विभिन्न भाषाओं में हैं चौरासी से अधिक विषयों पर लेख हैं. इस संग्रह में एक हजार, पांच सौ से अधिक पांच सुलेख पैनल और विभिन्न कला परंपराओं की लघु चित्रों का एल्बम भी शामिल हैं.
विषयों की विविधता बहुत व्यापक है और इसमें चिकित्सा, विज्ञान, तर्क, कृषि, सुलेख, लेक्सिकोग्राफी, गणित, भौतिकी, खगोल विज्ञान, खेल, कला, सिंटेक्स, संगीत, इतिहास, कविता, जीवनी, राजनीति, दर्शनशास्त्र, व्युत्पत्ति, नीतिशास्त्र, राजनीति, यात्रा, प्रवीणता, आर्यिक विज्ञान, धर्मशास्त्र, सूफीवाद, कानून, शब्दकोश, जादू, तीरंदाजी इत्यादि शामिल हैं.
पांडुलिपियां इस्लाम, हिंदू, ईसाई, जोरास्टियन आदि भारतीय धर्मों से संबंधित हैं. ये पांडुलिपियां विभिन्न आकार, प्रकार और रूपों में हैं. गौर किया जाए कि दुनिया में पवित्र कुरान की केवल दो लघु पांडुलिपियों की ही प्रतियां हैं और इनमें से एक ईरान में है और दूसरी सलारजंग संग्रहालय में और इसका आकार 2.4 सेंटीमीटर है. संग्रहालय में एक बड़ी कुरान भी है, जो 60x30 सेंटीमीटर की है. कुछ कैलीग्रापिक पैनलों ने कांच पर लिखे हैं और संग्रहालय में नाखून पर किए गए काम की भी अद्भुत पांडुलिपियां हैं. अन्य सुलेख काम 'कूफ्ती, थुल्थ, नश्ख, तालिक, नास्ताअलिक, गुबर, रायहान, शिकस्त, दीवानी, रिक्का, बहार, तुघरा, माकुस और अन्य शैलियों में हैं.
अरबी पांडुलिपियां
पुस्तकालय में अरबी भाषा की 2,500 से अधिक पांडुलिपियों का संग्रह है, इसके मुख्य आकर्षण है - गणित विषय पर ‘अलजेब्रा पर शारहू मुख्तशर अल मुख्तशर’ (847 ईस्वी) है, जो कि एक दुर्लभ कार्य है. खगोलशास्त्र के विषय पर ‘दुनिया की तैयारी और उपयोग’ (16 वीं) में सबसे पुरानी पांडुलिपि है. चिकित्सा के क्षेत्र में, पुस्तकालय में एविसेन्ना (इब्न सिना) द्वारा किलाबुल कानून की पांडुलिपियां हैं. प्राकृतिक इतिहास में उल्लेखनीय पांडुलिपियां हैं - हैयातुल हैवान. दर्शनशास्त्र में, पुस्तकालय में एक विश्वकोष ‘रसियालख्वानूस सफा’ (16 वीं शताब्दी) है. अल ताजरिद पिल् मंतिक तर्क विषय पर लिखा एक बहुप्रसिद्ध कार्य है, जिसे नसीरुद्दीन तुसी (1628 ईस्वीं) और ‘अला शरहिल मलाली’ की पांडुलिपियां हैं जो सम्राट जंहागीर की इंपीरियल लाइब्रेबी से ली गई प्रति है. इस संग्रहालय में शियाओं और सुन्नियों के इस्लामी धर्मशास्त्र जो अदियाह (प्रार्थना) से संबंधित हैं, न्यायशास्त्र और सूफी मत पर भी पांडुलिपियों का बड़ा संग्रह है. ‘तार्रुफ ई मदहबित तस्सवुफ’ सूफीवाद के सिद्धांतों (दिल्ली -1675 ईस्वी) के परिचय पर एक दुर्लभ पांडुलिपि है. लेक्सिकॉन (शब्दसंग्रह) का सबसे पुराना कोडेक्स ‘सहाह’ है, जिसे अबू नसर (1218 ईस्वी) द्वारा संग्रहित किया गया है. वाक्य संग्रह के विषय पर ‘जैयुल कयावद’ (1576 ईस्वी) एक दुर्लभ कोडेक्स है और ‘शब्द व्युत्पति’ विषय पर दूसरे निजाम के काल के दौरान शफिया पर की गई टिप्पणी इस पुस्कालय में उपलब्ध है.
फारसी पांडुलिपियां
इस संग्रहालय में फ़ारसी भाषा की लगभग 4,700 पांडुलिपियां हैं. इनमें से सबसे उत्कृष्ठ है - रौजातुल मुहिब्बिन, जिसमें बुखारा परंपरा से संबंधित बीस चित्र शामिल हैं और इसे प्रसिद्ध कैलिग्राफर मीर अली हरवी द्वारा लिखा गया था. सुन्नी कमेंटरी पर सबसे पुरानी पांडुलिपि है – ‘’अल बसाइर फिल वूजुह वान नाज़ीर’’, जिसे अरबी नश्ख में 1207 ईस्वीं में लिखा गया था. तसव्वुफ (सूफीवाद) पर सबसे मूल्यवान और उपयोगी ग्रंथ बायाजिद बुस्तामी को समर्पित है, जिसे 1588 ई. में लिखा गया था .
कला, विज्ञान, भाषण, ज्योतिष, जादू और तीरंदाजी विषयों पर भी पांडुलिपियां हैं. इस संग्रहालय में कृषि पर एक कोडेक्स और अर्द्ध कीमती पत्थरों पर कई कोडेक्स उपलब्ध हैं. सुलेख - कला पर इस संग्रहालय में कई पांडुलिपियां हैं, पाककला विषय पर शाहजहां के लिए लिखी गई ‘’दस्तूर-ए-पुखतन-अल- अटामाह’’ नामक दो पांडुलिपियां हैं. इत्र बनाने की प्रक्रिया पर भी भी एक कोडेक्स है.
दवाईयों में, फारसी भाषा में सबसे पुराना अरबी भाषा का अनुवाद है - ‘तर्जुमा-ए-मिन्हाजुल मायन’, जिसे मुहम्मद – अर- रदी द्वारा शाहजहां के लिए लिखा गया था. इस संग्रहालय में भारत में लिखे सबसे पुराना चिकित्सा विश्वकोश भी है. पशुविज्ञान में, मुआलाजा-ए-जानवर उपचार पर लिखी सबसे पुरानी पांडुलिपियां हैं और इसे फिरोज शाह (1281 ईस्वी) को समर्पित किया गया है.
उर्दू, तुर्की, पुष्तो, हिंदी और उड़िया पांडुलिपियां
सलारजंग संग्रहालय के पुस्तकालय में विभिन्न विषयों पर 1,200 से अधिक उर्दू पांडुलिपियां हैं, जिनमें राजा मोहम्मद कुली की दीवान-ए-कुली कुतुब शाह और इब्राहिम आदिल शाह द्वारा नूरस तथा गणित पर एक दुर्लभ पांडुलिपि 'लीलावती’ और तुर्की भाषा की 25 से अधिक पांडुलिपियां तथा फारसी लिपि में हिंदी की पांडुलिपियां भी हैं. साथ ही, जैन कल्पसूत्र के कुछ पन्ने तथा इतिहास, चिकित्सा, तंत्र और कविता विषयों पर उडिया, संस्कृत और तेलुगू भाषा में कुछ ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियां भी उपलब्ध हैं.
अनुसंधान और प्रकाशन
सलारजंग संग्रहालय ने पांडुलिपि विवरणों के 19 विवरणात्मक कैटलॉग प्रकाशित किए हैं, जिनमें से प्रत्येक में शीर्षक, लेखक, कालक्रम, चित्रण, मुहरें और आकृतियां हैं. संग्रहालय ने केवल 30 पन्नोंवाली पाक कुरान की एक दुर्लभ प्रति भी प्रकाशित की है, जिसमें प्रत्येक पंकित् का पहला अक्षर अरबी – अलिफ भाषा में है. संग्रहालय के पांडुलिपि सेक्शन द्वारा चर्मपत्र पर अनुसंधान भी किया जा रहा है.