पूर्वी ब्लॉक, पहली मंजिल
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सुदूर पूर्वी प्रतिमा
यह गैलरी नेपाल, तिब्बत और बर्मा जैसे देशों की संस्कृतियों और कलाओं का एक दिलचस्प मिश्रण प्रस्तुत करती है. इस गैलरी में काम को तीन माध्यमों में दर्शाया गया है: कांस्य, धातु और लकड़ी. इसमें मुख्यत: संग्रहित वस्तुएं बौद्ध से संबंधित हैं और कुछ ही वस्तुएं अन्य विषयों से जुड़ी हैं.
नेपाल की कला उतकृष्ट तांबे और कांस्य मूर्तिकला की कारीगरी के कारण से अपना अलग स्थान रखती है. सलारजंग संग्रहालय में नेपाली संग्रह में मुख्यत: कांस्य मंदिर दीपकों, खुकरियों, नेपाली कटार और बौद्ध - देवताओं के कुछ जोड़े शामिल हैं.
संग्रहालय में भगवान गणेश की एक तस्वीर के साथ दो मंदिर दीपक हैं, इसकी अनोखी विशेषता यह है कि ये गणेश का प्रतिनिधित्व करने वाली छवियां हैं, जिनमें से एक दीपक में हम गणेश की घुटनों पर बैठी मूर्ति पर एक बौद्ध देवता को देखते हैं, जबकि दूसरे दीपक में इसके विपरीत दिखाई देता है. चूंकि, बौद्ध "विघ्नांतका" की पूजा के लिए जाने जाते हैं (वह भगवान जो भगवान गणेश की तरह ही बाधाओं को समाप्त करते हैं), कह सकते हैं कि इन दीपकों को केवल बौद्ध मंदिरों के लिए बनाया गया था.
अर्द्ध कीमती पत्थरों से सजाई गई वस्तुओं में से, यहां पर 19 वीं शताब्दी के बौद्ध देवता 'तारा' है, जिसे एक छोटे मंदिरनुमा में रखा गया है और उन देवाता ने फ़िरोज़ा और गोमेद पत्थरों की बनी क्रिस्टल माला पहनी है. इस संग्रह में नेपाली 'खुकरियों' के शानदार उदाहरण भी प्रदर्शित हैं, जिनकी म्यानें और हत्थों को अर्द्ध कीमती पत्थरों से सजाया गया है.
धर्म, संस्कृति और कला के मामले में तिब्बत स्वाभाविक रूप से, नेपाल का अनुकरण करता है. संग्रहालय में प्रदर्शित संग्रह तिब्बत की जीवंत कला कौशल और परंपराओं को 'थंगकास' (स्क्रॉल पेंटिंग्स) और तांबे के बने चाय के बर्तनों के रूप में दर्शाते हैं. 'थांगकास' दरअसल नेपाल और तिब्बत की दो प्रमुख कलाओं के रूप हैं, जिनमें उन्हें महारत हासिल है.
संग्रहालय में रखे थंगकास के छोटे संग्रहों में, एक थंगकास प्राचीन शिक्षक "पद्मसंभव" – लामावाद के संस्थापक तथा बौद्ध धर्म की शाखा के विषय पर आधारित है, जो 18वीं या 19वीं शताब्दी से संबंधित है.
बर्मा पूर्व दिशा में भारत के निकट होने के कारण, बर्मा की अधिकांश कला बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म से प्रभावित है. लकड़ी की नक्काशी में संभवत: बर्मा देश जैसी उत्कृष्ठ ता और सहजता का कोई पर्याय नहीं है.
संग्रहालय में लकड़ी से बनी मूर्तियां बड़ी संख्या में उपलब्ध हैं, जिन पर गोलाकार और विविध आकार में नक्काशी की गई हैं. संग्रहालय में बांस और अन्य नर्म लकडि़यों पर बने सोने, लाल और काले रंग में आकर्षक लौह कार्यों को भी प्रदर्शित किया गया है.
आयताकार आकार के साल की लकड़ी में "बुद्ध का जन्म" दर्शाता हुआ एक कलात्मक उभारवाली नक्काशी दीवार पर लटकाने के लिए प्रदर्शित है, जिसके बॉर्डर पर जरदोजी से नक्काशी की गई है और इस पर 19वीं शताब्दी के राशिचक्र के चिह्न हैं. सोने और काले रंग की पृष्ठभूमि में सजे दो फिंगर बाउल और अन्य ज्यामितीय आकार की वस्तुएं भी उत्तम हैं.