सेंट्रल ब्लॉक, निचली मंजिल
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भारतीय लघु चित्रकला
भारत में लघु चित्रकला का अध्ययन काफी आकर्षक है. भारत में कागज़ के आविष्कार अर्थात् लगभग 14वीं शताब्दी के आस- पास, से पहले दीवारों पर चित्राकारी के अलावा कपड़ों, लकड़ी के बोर्ड और ताड़ के पत्तों पर चित्राकरी की जाती थी. 15वीं और 16वीं शताब्दी के गुजरात स्कूल ऑफ पेंटिंग से संबंधित कल्पसूत्र और कालकाचार्य कथा तथा अन्य जैन विषयों की कई सचित्र पांडुलिपियां संग्रहालय में हैं.
सलारजंग संग्रहालय में प्रारंभिक जैन कल्पसूत्रों की कुछ रोचक पत्तियां हैं, जो पश्चिमी भारतीय चित्रकला की प्रारंभिक शैली में चित्रित हैं; इन चित्रों में सीमित परिदृश्य, मूल रंग के उपयोग, कोणीय नक्शानवीस और बोलती आंखों की विशेषता है. इनकी विषय वस्तु जैन पौराणिक कथाओं के उपाख्यानों से संबंधित है. 'बाल- गोपाल स्तुति’ से एक चित्रित पृष्ठ से यह स्पष्ट होता है कि ब्राह्मणिक पंथ के कार्यों को भी जैन कल्पसूत्र शैली में चित्रित किया जाता था.
16वीं शताब्दी के प्रारंभ में भारतीय लघुचित्र बनाने में काफी प्रगति देखी गई. अकबर के काल के चित्रों में मुगल कला का मुख्य योगदान भारतीय और फारसी साहित्य की उत्कृष्ठ कृतियों का चित्रण था. अकबर के काल की कला ने मौजूदा भारतीय परंपराओं के साथ फारसी तत्वों को भी संश्लेषित किया.
इस संग्रह में उपलब्ध 'एक राजकुमार का जन्म' नामक चित्रकला महत्वपूर्ण घटना से जुड़ी है, जो इस पर फारसी और भारतीय – दोनों के प्रभाव को दर्शाती है. 'राजा विक्रमादित्य' का चित्र 16 वीं शताब्दी में बिचित्तारा द्वारा की गई चित्रकारी का एक उत्कृष्ठ उदाहरण है.
संग्रहालय में दक्खिनी क्षेत्र से सचित्र पांडुलिपियों और लघुचित्रों का समृद्ध संग्रह भी है. इन पांडुलिपियों में, 'भोग बाल' जो कि बीदर के 16वीं शताब्दी से संबंधित है, संग्रहालय के उत्कृष्ठ संग्रह में से एक है. गोलकोंडा और बीजापुर की उल्लेखनीय और उत्तम पांडुलिपियों को भी यहां देखा जा सकता है. गोलकोंडा शिल्पकला परंपरा के 'जमशीद कुली और इब्राहिम कुली बातचीत' दर्शाती एक चित्रकारी संग्रहालय की एक अन्य मूल्यवान संग्रह है.
राजस्थान की रूमानी भूमि ने लघु चित्रकला के क्षेत्र में बड़ा योगदान दिया है. मुगल परंपरा काल की कला के साथ - साथ राजपूत कला भी चलती रही, जिसमें स्वदेशी चरित्रों को दर्शाया गया था. मालवा चित्रकला में रामायण के दृश्य दिखाए गए हैं, जो 17वीं शताब्दी के मध्य के हैं और ये हिंदू पौराणिक कथाओं के चित्र हैं, जो 17वीं शताब्दी के प्रारंभ के हैं. इस संग्रहालय में मेवाड़ कला परंपरा के 'बिहारी सत्साई' के भी कुछ सचित्र हैं. इस संग्रहालय में 18वीं शताब्दी के मध्य में गहरे पीले रंग में की गई 'रागमाला' सेट की चित्रकलाएं भी हैं.
संग्रहालय में पंजाब के पहाड़ी क्षेत्र की चित्रकलाएं भी हैं. बशोली-कांगड़ा क्षेत्र की चित्रकला भी यहां देखी जा सकती है, कांगड़ा क्षेत्र की चित्रकला की एक सबसे उत्तम प्रदर्शनी है, जिसमें राजा संसार चंद (जिनके शासनकाल में पहाड़ी चित्रकला अपने चरम पर पहुंची) को 'जन्माष्टमी' त्यौहार में अपने दरबारियों के साथ दर्शाया गया है. गुलेर से 'राजा प्रकाश चंद' के चित्रों के अलावा, बिलासपुर से ‘कृष्ण का गोपियों संग होली खेलना’ जैसी चित्रकलाओं पर इस संग्रहालय को नाज़ है.