सेंट्रल ब्लॉक, पहली मंजिल
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भारतीय रजत
संग्रहालय में चांदी के बर्तनोंवाले कमरे में करीमनगर और कटक की महीन ज़रदोजी देखने को मिलती है. कान की बालियों, लटकनों और ट्रे जैसे जटिल पैटर्न में बहुत ही महीन, चांदी की तारों से धागे को खींचकर बुना गया है.
भारतीय कारीगरों ने सजावटी चांदी की वस्तुओं को गढ़ने, उनको छीलने और उनको आभूषण का रूप देने में सदैव ही असाधारण कौशल का परिचय दिया है. उन कलाओं की आज उपलब्ध वस्तुओं में से सबसे पुरानी वस्तु बहुमूल्य धातु से बना रजत- पात्र है, जो ईसा पूर्व 50 शताब्दी का है और इसे जलालाबाद, अफगानिस्तान में बौद्ध स्थल की खुदाई के दौरान एक कारीगर द्वारा खोजा गया था. कभी-कभी चांदी के बर्तन में हमें एक छोटा सा भाग सोने का बना हुआ मिलता है, जिसे सोने की परत चढ़ाने के प्रयोजन से चढ़ाया जाता है. उड़ीसा के बोलनगिर जिले में तारभा स्थान ऐसे चांदी के उत्तम बर्तन बनाने के लिए प्रसिद्ध है. कश्मीर में उच्च गुणवत्तावाले चांदी के बर्तनों के उदाहरण हमें हुक्का के रूप में देखने को मिलते हैं, जिन्हें कमल, चिनार और पिछल्ली रस्सीनुमा से गहरी छिलाई करके इनकी सजावट की जाती है.
इस संग्रहालय में राजस्थान से संग्रहित मसालों के डिब्बे, गुलाब जल को छिड़कनेवाले गुलाब पोश, सिंगारदान, हुक्के, खानी की प्लेटें, बड़े आकारवाले गिलास और पानी के घड़े शामिल हैं. गुजरात विशेषकर इसका कच्छ भाग उत्कृष्ठ चांदी के बर्तनों के लिए मशहूर है, यहां की बनी वस्तुओं पर की गई कलाकारी और मोल्डिंग अपने आप में अद्भुत है, जिसे कच्छीकाम कहते हैं.
चांदी का सिंगारदान, 20 शताब्दी
चांदी का जरदोशी किया हुआ बर्तन, करीमनगर 19वीं शताब्दी