सेंट्रल ब्‍लॉक, पहली मंजिल

खिलौने और गुड़िया

भारत में खिलौने और गुड़िया सिंधु घाटी सभ्यता के समय से बनाई जा रही हैं. इनका उपयोग समारोहों, त्यौहारों और शुभ अवसरों पर किया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि खिलौनों का भारतीय संस्कृति के साथ एक अगाध संबंध है. विभिन्न स्थानों के खिलौनों की अपनी अलग शैली और कलात्‍मक गुण होता है. पुराने समय में हमारे कारीगरों जंगली जानवरों, पक्षियों और देवी - देवताओं की मिट्टी के खिलौने बनाकर बच्चों को देते थे. इन खिलौनों के साथ खेलते समय बच्चे स्वाभाविक रूप से अपनी जानकारी को और बढ़ाकर, इन खिलौनों के बारे में महत्वपूर्ण बातें समझकर अपने ज्ञान में वृद्धि करेंगे, ये खिलौने न केवल सौंदर्य ज्ञान का आभास कराते हैं, बल्कि बढ़ते बच्चों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी डालते हैं.

खिलौनों के उत्पादन में विविधता के लिए आंध्र प्रदेश को विशेषता हासिल है, जो उपलब्‍ध हर प्रकार के कच्‍चे माल से खिलौने बनाते हैं और इन खिलौनों को कोंडपल्‍ली खिलौने कहा जाता है. कोंडपल्‍ली एक गांव है, जो विजयवाडा से कुछ ही ‍मील की दूरी पर है. यहां के बने खिलौने पूरे देश और विदेशों में अपनी पहचान बना चुके हैं. ये खिलौने 'तेल्‍ला पोनिकी' लकड़ी से बने होते हैं, जिन्‍हें कैसा भी आकार दिया जा सकता है. बनाए गए खिलौने पक्षियों, पौराणिक कथाओं और दैनिक श्रमिकों से संबंधित थे. इनके बनाए खिलौनों की शैली यथार्थवादी है, किंतु चेहरे के भावों अभिव्यक्ति में एक दुर्लभ नजाकतवाले है.