सेंट्रल ब्लॉक, निचली मंजिल
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सहारे की छड़ियां
सहारा देनेवाली छडि़यों की कहानी बहुत पुराने समय की है. सहारा देनेवाली छडियां मनुष्यों के साथ उतने ही पुराने समय से है, जब से उसे सहारे की आवश्यकता हुई, चाहे उसे बुढ़ापे में सहारे के लिए इसकी आवश्यकता पड़ी हो या युवा रूप में एक हथियार के रूप में.
आरंभ में यह जनजातियों के बड़े अधिकारियों द्वारा अपने अधीन कर्मचारियों, गांवों के मुखिया द्वारा चरवाहों जो उनके भेड़ और मवेशियां चराते थे, के लिए उपयोग की जाती थी. पुराने समय में, यहां तक कि भविष्यवक्ताओं, पैगंबर मूसा ने लकड़ी – समान कर्मचारियों को सहारे के रूप में रखा. समय बीतने के साथ, इन कर्मचारियों को राजा द्वारा अधिकार के रूप में माना जाने लगा और इन्हें रखना उनकी शक्ति का प्रतीक माना जाने लगा. बाद में, इन कर्मचारियों पर रत्न और कीमती पत्थरों से सजावटें की गईं, ताकि उनको देखकर उनके मालिक के रुतबे का पता चल सके.
17वीं और 18वीं सदी में सहारा देनेवाली छडि़यों को यूरोप और अन्य लोगों द्वारा फैशन के रूप में उपयोग करने और अपने साथ लिए जाने पर एक बदलाव देखने को मिला.
ये छडि़यां हर आदमी के पास अलग – अलग प्रकार की होती थीं, अमीर व्यक्ति अपनी शान दिखाने के लिए सजावटी छड़ी रखता था, जबकि अन्य लोग, जिनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, वे साधारण छड़ी का उपयोग करते थे.
सहारा देनेवाली छडि़यां जब आकर्षण का केंद्र बन गईं, तो उस काल के नामी सुनारों ने उन छडि़यों पर बहुमूल्य और कुछ कम कीमती पत्थरों को जड़कर उनकी खूबसूरती को और भी उत्तम और अधिक आकर्षक बना दिया. इसी प्रकार की कुछ छडि़यां संग्रहालय में 'सहारा देनेवाली छडियां गैलरी' में प्रदर्शित की गई हैं.
गैलरी में विविध प्रकार की सहारा – छडि़यां प्रदर्शित की गई हैं. ये बेंत, मलक्का बेंत, लकड़ी, संदल, हाथीदांत, मछली की हड्डी, हरा पत्थर, कांच, चमड़े आदि से बनी हैं. इनमें से कुछ अर्द्ध कीमती हिल्ट से भी सुसज्जित हैं. यह पूरा संग्रह सलारजंग परिवार का अपना व्यक्तिगत संग्रह है.